Monday, 25 April 2016

'चंद्रशेखर टू नवाज़: भाईजान, क्या बदमाशी है?' @ रेहान फ़ज़ल

Image copyrightAP
संजय गांधी में धैर्य नाम के गुण की काफ़ी कमी थी. वो अक्सर एक छोटे जहाज़ से धीरेंद्र ब्रह्मचारी से मिलने जम्मू जाया करते थे. वो अपना एक मिनट का समय भी ज़ाया नहीं करना चाहते थे.
उन्होंने रक्षा मंत्री बंसी लाल से निश्चित हवाई रास्ता छोड़ सीधी लाइन में जम्मू जाने की अनुमति मांगी. संयुक्त सचिव शशिकांत मिस्रा ने ये अनुरोध वायु सेनाध्यक्ष एयर चीफ़ मार्शल ह्रषिकेश मुलगांवकर तक पहुंचा दिया.
उन्होंने तुरंत जवाब दिया कि इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे भारतीय वायु सेना का अभ्यास प्रभावित होगा.
जब मिस्रा ने ये बात संजय गांधी को बताई तो वो उनका मुंह ग़ुस्से से लाल हो गया. मिस्रा ने जब उन्हें वायुसेना अध्यक्ष का नोट दिखाया तो उन्होंने गुस्से में वो नोट मिस्रा के ऊपर फेंक कर कहा, "स्टुपिड नोट."
मिस्रा ने कहा, "संजय, ये स्टुपिड नोट हो सकता है, लेकिन हम इसकी अवहेलना नहीं कर सकते हैं."
शशिकांत मिस्रा ने बीबीसी को बताया कि संजय का ग़ुस्सा शाँत करने की कोशिश में मैंने उनसे कहा कि कि अगर आप चाहें तो मैं पुनर्विचार को लिए ये नोट दोबारा वायुसेनाध्यक्ष के पास भेज सकता हूँ. इस पर संजय का जवाब था, "मुझे मालूम है आप फिर उसी स्टुपिड जवाब के साथ वापस आएंगे."
ये सुनना था कि मिस्रा का सारा धीरज जाता रहा. वो बताते हैं, "मैंने संजय से कहा मैं इस तरह की भाषा का आदी नहीं हूँ. मुझे आपके पास रक्षा मंत्री ने भेजा है. अगली बार से आप मुझे यहाँ नहीं पाएंगे. मैंने अपने काग़ज उठाए और ज़ोर से दरवाज़ा बंद करता हुआ कमरे से बाहर हो गया."
इस बीच कांग्रेस की सरकार गिर गई और जनता पार्टी का शासन आ गया. नई सरकार संजय को तंग करने लगी. इंदिरा गाँधी के डाक्टर के पी माथुर की बेटी की शादी में संजय और शशिकांत मिस्रा को आमंत्रित किया गया. हर कोई संजय से मिलने से बच रहा था.
शशिकाँत ख़ुद उनके पास गए और बोले, "आप अच्छा मुक़ाबला कर रहे हैं. इसी तरह डटे रहिए." मिस्रा बताते हैं, "संजय ने मुझसे कहा मुझे आपसे माफ़ी मांगनी है. उस दिन मैं आपसे बिना वजह नाराज़ हो गया था. ये शायद पहला मौक़ा था जब संजय ने किसी से माफ़ी माँगी थी."
Image copyrightCourtsey SK Misra
हरियाणा के तीन लालों बंसीलाल, देवीलाल और भजनलाल की दुश्मनी किसी से ढकी-छिपी नहीं है, लेकिन एस के मिस्रा ने इन धुर विरोधी राजनीतिज्ञों के प्रधान सचिव होने की भूमिका बख़ूबी निभाई. इन्हीं एसके मिस्रा ने अपने अनुभवों पर एक किताब लिखी है - फ़्लाइंग इन हाई विंड्स, जो हाल ही में प्रकाशित हुई है.
कानपुर में जन्मे 1956 बैच के आईएएस एसके मिस्रा कहते हैं कि बंसीलाल पूरी तरह से राजनीतिक इंसान थे, लेकिन "मैं उनकी पॉलिटिक्स में हिस्सा नहीं लेता था."
मिस्रा की दूसरी चीज़ जिसकी कद्र बंसी लाल और हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री भी करते थे कि उनका फॉलो अप एक्शन बहुत तेज़ होता था. जो भी काम होता था एस के मिस्रा की कोशिश होती थी कि वो काम आज नहीं कल हो जाना चाहिए था. कल यानी आने वाला कल नहीं बल्कि बीता हुआ कल.
यही वजह रही कि उनका नाम हरियाणा के विकास से जुड़ गया. चाहे पर्यटन हो, सिंचाई की परियोजनाएं हों या सड़कों का विकास. सब के पीछे एस के मिस्रा का नाम लिया जाने लगा. हरियाणा को पर्यटन के मानचित्र पर लाने की शुरुआत चंडीगढ़ से दिल्ली की एक कार ड्राइव के दौरान हुई थी.
Image copyrightSK MISHRA
करनाल के पास नहर के पास एक खोखे पर पड़ी चारपाई पर बंसी लाल और एस के मिस्रा चाय पी रहे थे. इसी दौरान मिस्रा ने बंसीलाल से कहा कि इस नहर के बगल में एक अच्छा सा रेस्त्रां खोला जा सकता है और इस नहर का पानी ले कर यहाँ एक कृत्रिम झील बनाई जा सकती है.
बंसीलाल को ये आइडिया जंच गया और उन्होंने मिस्रा को इस पर काम करने की इजाज़त दे दी. एस के मिस्रा कहते हैं, "मैं बढ़ा चढ़ा कर नहीं कह रहा हूँ, लेकिन 70 या 75 फ़ीसदी फ़ाइलें जो मुख्यमंत्री के आदेश से पास होती थीं, मैं ख़ुद ही उन्हें पास कर देता था बिना उन्हें दिखाए हुए. मैं वही फ़ाइलें उनके सामने पेश करता था जिनके बारे में मैं निश्चित नहीं होता था कि उनके बारे में बंसीलाल के विचार क्या होंगे या वो फ़ाइलें जिनके लिए मंत्रिमंडल की मंज़ूरी ज़रूरी होती थीं."
यह बताता है कि बंसीलाल का कितना विश्वास उनमें था और दूसरी तरफ मिस्रा ने इस विश्वास का कभी कोई बेजा फ़ायदा नहीं उठाया. शशिकांत मिस्रा बताते हैं कि एक बार वो बंसी लाल के साथ राष्ट्रीय एकता सम्मेलन में भाग लेने श्रीनगर गए. वहाँ के मुख्यमंत्री सादिक़ ने उनके लिए बेहतरीन भोज का प्रबंध किया हुआ था. बंसीलाल चूँकि कट्टर वेजेटेरियन थे, इसलिए वो गोश्ताबा जैसे किसी भी मांसाहारी पकवान को देखना भी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे.
Image copyrightPradeep
मिस्रा याद करते है, "बंसीलाल ने कहा आइए चुपके से यहाँ से निकल लिया जाए और बाहर कहीं वेजेटेरियन खाना खाया जाए. शामियाने के मुख्य द्वार पर इंदिरा गाँधी और सादिक़ खड़े थे. इसलिए बंसीलाल कनात के बगल में जगह बनाते हुए बाहर निकले और हेज को फलांग कर सड़क पर आ गए. उनके पीछे पीछे मैं था."
मिस्रा आगे बताते हैं, "सड़क पर घूमते हुए बंसीलाल की नज़र एक बोर्ड पर गई जिस पर लिखा हुआ था गुजराती भोजनालय. हम लोग चार मंज़िल सीढ़ियाँ चढ़ कर उस भोजनालय पहुंचे. वहाँ पर जब उनके सामने गुजराती थाली आई तो बंसी लाल की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था. सीढ़ी से उतरते ही बंसी लाल ने एक हलवाई ढ़ूंढ़ निकाला और वहाँ पर हमने रसगुल्लों का आनंद लिया. ये सिलसिला पूरे तीन दिन चला. बंली लाल तो खुश हो गए लेकिन मुझे अपने दिल पर पत्थर रखना पड़ा क्योंकि मैं माँसाहारी पकवानों का बहुत शौकीन था."
बंसीलाल के हारने के बाद जब देवीलाल सत्ता में आए को उन्होंने अपनी पहली ही प्रेस कॉन्फ़्रेंस में ऐलान किया कि एसके मिस्रा जेल जाएंगे. उनके ख़िलाफ़ क़रीब पचास केस रजिस्टर किए गए और एसके मिस्रा ने स्टडी लीव पर जाने के लिए आवेदन कर दिया.
आईसीसीआर के एक प्रोजेक्ट पर जाने के लिए स्टडी लीव देने के उनके आवेदन पर हरियाणा सरकार कोई निर्णय नहीं ले रही थी. एस के मिस्रा ने तब देवीलाल से मुलाक़ात करने का फ़ैसला किया.
हालांकि मिस्रा को डर था कि अगर वो मुलाक़ात का समय मांगेंगे तो देवीलाल उसके लिए कतई राज़ी नहीं होंगे. इसलिए वो विना अपॉएंटमेंट के गए.
देवीलाल से एस के मिस्रा ने कहा कि उन्हें छुट्टी चाहिए तो देवीलाल बोले, "वापस आ जाओ." मिस्रा ने कहा, "आप तो मुझे जेल भेज रहे थे. आपको अगर विश्वास है तो मैं वापस आ जाता हूँ. जहाँ मर्ज़ी आए लगा दीजिए." इस पर देवीलाल ने कहा कि आप मेरे प्रधान सचिव के तौर पर वापस आइए.
Image copyrightIndian postal department
शशिकाँत मिस्रा याद करते हैं, "एक बार मुझे देवी लाल के साथ चीन जाने का मौका मिला. मुझे ये तो पता था कि देवीलाल माँसाहारी है क्योंकि एक बार मैं उन्हें दिल्ली के गेलार्ड रेस्तराँ ले कर गया था जहाँ उन्होंने चिकन का आनंद लिया था, लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि वो शराब भी पीते हैं. फ़्लाइट में मैं उनकी पिछली सीट पर बैठा हुआ सो रहा था. मेरी हल्की सी आँख खुली तो देखता क्या हूँ कि एयर होस्टेस देवी लाल के गिलास में शैंम्पेन डाल रही थी."
मिस्रा आगे कहते हैं, "मैंने जब दोबारा आँख बंद की तो देवीलाल ने अपने पीए को आवाज़ लगाई और कहा कि ज़रा छोरी से कहो अंगूर का रस फिर ले आए. पूरी फ़्लाइट के दौरान देवीलाल ने शैंम्पेन की दो बोतलें ख़त्म कीं. जब हम बीजिंग पहुंचे तो हम दोनों के कमरे अग़ल-बग़ल में थे. एक दिन शाम को अपनी रौ में मेरे साथ चलते हुए बार पहुंच गए. बार मैन ने पूछा वही सर्व करूँ जो आप रोज़ लेते हैं. देवीलाल सकपका गए. मुझे वो नहीं बताना चाहते थे कि वो शराब पीते हैं. उन्होंने हड़बड़ा कर कहा आइस क्रीम खिलाओ."
थोड़े दिनों में उनकी सरकार गिर गई और भजन लाल नए मुख्यमंत्री बने. उन्होंने भी एसके मिस्रा को इस पद पर बने रहने के लिए कहा. इसके बाद इंदिरा गाँधी उन्हें भारतीय पर्यटन विकास निगम का अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक बना कर दिल्ली ले आईं.
Image copyrightSK MISHRA
लेकिन यहाँ एसके मिस्रा के पर्यटन मंत्री अजीत प्रसाद शर्मा से गहरे मतभेद हो गए. दोनों के मतभेद सुलझाने की कोशिशें हुईं लेकिन जब शर्मा अपने को बदलने को तैयार नहीं हुए तो इंदिरा गांधी ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्ख़ास्त कर दिया और मिस्रा को फ़ेस्टिवल ऑफ़ इंडिया के निदेशक की नई ज़िम्मेदारी दी गई.
उनकी देखरेख में अमरीका, फ़्रांस, सोवियत संघ और जापान में फ़ेस्टिवल ऑफ़ इंडिया आयोजित किए गए. नेशनल जियोग्राफ़िक ने अपने चार अंकों में फ़ेस्टिवल ऑफ़ इंडिया को कवर पेज पर रखा. इसके अलावा टाइम, न्यूज़ वीक और आर्किटेक्चरल डाइजेस्ट ने भी इसे कवर किया. संयोग की बात थी कि गाँधी फ़िल्म उन्हीं दिनों रिलीज़ हुई.
इस सबका प्रभाव था कि भारत में यूरोपीय देशों से पर्यटकों की संख्या में 80 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई. शशिकांत मिस्रा ने ही दिल्ली के पास सूरजकुंड मेले की शुरुआत की. उन्होंने भारत भर के कलाकारों को सूरजकुंड आने के लिए आने-जाने का किराया दिया और उनके रहने की व्यवस्था की. यहां आकर वो अपनी चीज़ें ग्राहकों को सीधे बेचते थे, जिससे बिचौलिए द्वारा कमाया जाने वाला लाभ भी उन्हें मिलता था.
मिस्रा ने ही इस मेले की निश्चित तारीख तय कराई. पहली फ़रवरी से 15 फ़रवरी तक. ट्रेवल एजेंसियाँ इसके बारे में अपने ब्रोशर में लिखने लगीं और लोगों के बीच इस मेले का इंतज़ार शुरु हो गया. 1992 में जब चंद्रशेखर भारत के प्रधानमंत्री बने जो उन्होंने एस के मिस्रा को अपना प्रधान सचिव बनाया. उस समय मिस्रा अमरीका में थे. उनकी ग़ैर मौजूदगी में ही उनकी नियुक्ति के आदेश जारी हो गए.
Image copyrightSK MISHRA
जब वो चंद्रशेखर से मिलने गए तो उन्होंने कहा, ''मैंने तुमसे संपर्क करने की बहुत कोशिश की लेकिन तुम मिले नहीं. मैंने कहा कि आदेश जारी किए जाएं. मैं तुम्हें मना लूँगा.''
एस के मिस्रा याद करते हैं कि चंद्रशेखर को वो सम्मान नहीं मिला जिसके कि वो हक़दार थे. एक बार गुलमर्ग में कुछ स्वीडिश इंजीनयरों का अपहरण कर लिया गया. स्वीडन के राजदूत चंद्रशेखर से मिलने आए.
उन्होंने कहा, चलो नवाज़ शरीफ़ से बात करते हैं. फ़ोन पर उनके पहले शब्द थे, ''भाई जान, वहाँ बैठे-बैठे क्या बदमाशी करा रहे हो?'' इस पर नवाज़ शरीफ़ बोले कि इससे हमारा कोई वास्ता तो है नहीं. उनको तो मिलिटेंट्स ने पकड़ लिया.
इस पर चंद्रशेखर ने कहा, ''असलियत हमें मालूम है. असलियत आपको भी मालूम है. मुझे प्रेस में जाना नहीं है. मानवता के नाते ये इंजीनियर कल सुबह तक छूट जाने चाहिए और मुझे कुछ सुनना नहीं है.'' एस के मिस्रा कहते हैं कि अगले ही दिन ये इंजीनियर रिहा कर दिए गए.
इसके बाद एसके मिस्रा संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य बने. उनका कहना है कि उन्हें पंद्रह मिनट में ही अंदाज़ा लग जाता था कि सिविल सर्विस के उम्मीदवार में दम है या नहीं.
Image copyrightSK MISHRA
एक बार जालंधर की एक लड़की सिविल सर्विस का इंटरव्यू देने आई. उससे बाकी सदस्यों नें छह सवाल पूछे. वो किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पाई. जब एसके मिस्रा की बारी आई तो उन्होंने कहा, ''तुमने अपने सीवी में लिखा है कि तुम डिबेटर हो. मैं एक प्रीपोसीशन रखता हूँ. तले हुए अंडे ऑमलेट से बेहतर होते हैं. इस पर बहस करो.''
लड़की ने कहा कि मुझे सोचने के लिए क्या दो मिनट का समय दिया जा सकता है. उन्होंने कहा ठीक है. उसके बाद लड़की ने उस विषय पर बेहतरीन भाषण दिया. इसके बाद एसके मिस्रा ने कहा कि अब मोशन के खिलाफ़ बोलो. उसने फिर बहुत अच्छा बोला.
एस के मिस्रा ने उस लड़की को 80 फ़ीसदी अंक दिए. उनके साथियों ने कहा कि उसने किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया. तब भी आप उसे इतने अंक दे रहे हैं. मिस्रा का जवाब था, ''मैंने उससे जो सवाल पूछा उसकी उम्मीद वो नहीं कर रही थी. उसने क्विक रिस्पॉन्स दिया. एक थिंकिंग अफ़सर में और क्या चाहिए?"

No comments:

Post a Comment